WHO रिपोर्ट का खुलासा: भारत में 30% महिलाएं जीवनभर घरेलू हिंसा की शिकार
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साथी हिंसा का काला सच: WHO ने दुनिया और भारत की तस्वीर दिखाई
जीवनभर में लगभग 30% भारतीय महिलाएं शारीरिक, भावनात्मक या यौन हिंसा का सामना कर चुकी हैं।
दुनियाभर में करीब 840 मिलियन महिलाएं अपने पार्टनर या किसी अन्य पुरुष द्वारा हिंसा झेल चुकी हैं, आँकड़े दो दशक में नहीं बदले
महिलाओं के खिलाफ हिंसा में गिरावट नहीं, WHO ने जताई गंभीर चिंता।
स्वास्थ्य / विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की हाल ही में जारी वैश्विक रिपोर्ट ने एक गंभीर सामाजिक समस्या पर फिर से ध्यान आकर्षित किया है। दुनिया भर में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती साथी हिंसा (Intimate Partner Violence)। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में भारत में 15 से 49 वर्ष की उम्र की 21 प्रतिशत महिलाएं अपने पति या साथी द्वारा शारीरिक या मानसिक हिंसा की शिकार हुईं, जबकि लगभग 30 प्रतिशत महिलाओं ने अपने जीवन के किसी न किसी चरण में ऐसी हिंसा झेली है। ये आँकड़े न केवल चिंताजनक हैं बल्कि समाज में मौजूद संरचनात्मक चुनौतियों और मानसिकता की ओर भी इशारा करते हैं।
WHO की रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर स्थिति भी कुछ बेहतर नहीं है। दुनिया की हर तीन में से एक महिला-कुल मिलाकर लगभग 840 मिलियन महिलाएं-अपने जीवनकाल में किसी न किसी तरह की अंतरंग साथी हिंसा या गैर-पार्टनर द्वारा यौन हिंसा का सामना कर चुकी हैं। चिंताजनक बात यह है कि साल 2000 से अब तक इन आँकड़ों में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है।
भारत में साथी हिंसा के रूप कई हैं, जैसे शारीरिक प्रताड़ना, मानसिक अत्याचार, आर्थिक नियंत्रण, यौन शोषण और सामाजिक अपमान। WHO की रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि घरेलू हिंसा के ये पैटर्न समाज के गहरे लैंगिक असमानता वाले ढाँचे से जुड़े होते हैं। भारत में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों और सामाजिक दबाव की वजह से कई महिलाएँ शिकायत दर्ज भी नहीं करतीं, जिससे वास्तविक संख्या इससे भी अधिक हो सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 8.4 प्रतिशत महिलाएं गैर-पार्टनर द्वारा यौन हिंसा की शिकार हुई हैं। भारत में भी ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है, हालांकि कई घटनाएँ रिपोर्ट नहीं होतीं क्योंकि पीड़ित महिलाएँ सामाजिक शर्म, परिवार के दबाव या न्यायिक प्रक्रिया की जटिलता के कारण आवाज़ नहीं उठातीं। भारत सरकार और कई गैर-सरकारी संगठनों द्वारा घरेलू हिंसा रोकने के लिए कानून, हेल्पलाइन और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जैसे घरेलू हिंसा अधिनियम (2005), महिला हेल्पलाइन 1091, वन-स्टॉप सेंटर आदि। लेकिन WHO की यह रिपोर्ट बताती है कि इन प्रयासों की गति और विस्तार को काफी बढ़ाने की जरूरत है।
भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा का संबंध कई सामाजिक कारणों से भी जुड़ा है, जैसे गरीबी, अशिक्षा, मद्यपान, पितृसत्तात्मक सोच, सामाजिक मान्यताएँ और मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएँ। रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा रोकने के लिए केवल कानून ही काफी नहीं, बल्कि सामाजिक व्यवहार परिवर्तन कार्यक्रम, स्कूल-स्तरीय शिक्षा, समुदाय-आधारित हस्तक्षेप और महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है।
WHO ने सरकारों को सुझाव दिया है कि स्वास्थ्य-क्षेत्र में घरेलू हिंसा पीड़ितों की पहचान और सहायता की प्रणाली को मजबूत किया जाए। अस्पतालों, क्लीनिकों, सामुदायिक केंद्रों और मनोवैज्ञानिक सहायता सेवाओं में प्रशिक्षित कर्मियों की नियुक्ति बढ़ाई जाए। भारत जैसे देश में, जहाँ सामाजिक और सांस्कृतिक ढाँचा विविध है, यह जरूरी है कि महिलाओं की सुरक्षा को विकास के केंद्र में रखा जाए। जब तक महिलाएँ सुरक्षित नहीं होंगी, तब तक किसी भी समाज का वास्तविक विकास संभव नहीं।
WHO की रिपोर्ट एक महत्वपूर्ण चेतावनी है, यह बताती है कि बीते 20 वर्षों में दुनिया ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने में पर्याप्त प्रगति नहीं की है। भारत के लिए भी यह वक्त जागने का है, जहाँ हर तीसरी महिला जीवन में कभी न कभी किसी न किसी रूप में हिंसा झेल रही है। अब आवश्यकता है कि परिवार, समाज, सरकार और संस्थाएँ मिलकर ऐसी पहल करें जिससे महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो और आने वाली पीढ़ियाँ हिंसा-मुक्त माहौल में रह सकें।